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अंतरिक्ष -25-May-2022

 कविता-अंतरिक्ष


आओ मन के अंतरिक्ष में
शैर कर लें। 

             चांद का शीतल प्रभा
             चित् में पिरोए आज हम
             शांत कर चित् चेतना
             जगमग बनाए रात हम,
बन बैरी तम के गमों से
बैर कर लें,
आओ मन के अंतरिक्ष में
शैर कर लें। 

            सूर्य का तेजस किरण 
            बन तेज भर ले प्राण हम
            ओस आंसू सोख कर
            दुःख का मिटाए शान हम,
भेद भाव का तोड़ बंधन
मेल कर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
शैर कर लें। 


           टूटते तारे क्षणिक
           मानो चमकते मोतियां
           नील अम्बर में किरण
           करती चमक अठखेलियां,
मन में मधुर चंचल चमक का
भाव भर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
शैर कर लें। 


            घूम घूम घन घनेरे
            रंगते रंगीन रंगोलियां
            घड़ घड़र घड़घराती
            चम चमचमाती बिजलियां
गोंद में खुशियां समेटे
प्रेम कर लें
आओ मन के अंतरिक्ष में
शैर कर लें। 


                रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर




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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

26-May-2022 04:46 PM

बेहतरीन रचना

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Punam verma

25-May-2022 09:14 PM

Nice

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Gunjan Kamal

25-May-2022 08:17 PM

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌

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